swami vivekananda essay in hindi। स्वामी विवेकानंद पर निबंध

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स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परम हंस जी के सबसे प्रिय शिष्यों में से एक थे। सनातन धर्म के प्रति प्रेम और उनके द्वारा सनातन धर्म की समझ का प्रचार प्रसार उन्होंने पुरे विश्व में किया । सनातन धर्म ही सभी धर्मो का मूल है और सभी धर्मो की जननी है ये बात पुरे विश्व में साबित भी की। आज हम आपके लिए इस पोस्ट में swami vivekananda essay in hindi ले कर आये है । स्वामी विवेकानंद पर निबंध को आप स्कूल और कॉलेज में इस्तेमाल कर सकते है । इस हिंदी निबंध को आप essay on swami vivekananda in hindi for class 1, 2, 3 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 तक के लिए थोड़े से संशोधन के साथ प्रयोग कर सकते है।

Swami Vivekananda Essay in Hindi

स्वामी विवेकानंद जी ऐसे महापुरुष है जिनके बारे में जीतना जाने उतना कम है। इनके योगदान प्रत्येक व्यक्ति के जीवन मे बदलाव लाते है। इनके बारे में पढ़ना, सुनना, समझना आज की पीढ़ी के लिए सौभाग्य की बात है। यह युवाओं के लिए प्रेरणा के प्रतीक है।हम सभी इनके विचारों को जान फिरसे कुछ नया करने की चाह उत्पन्न कर पाते है। कभी भी संकट के दौर में इनके विचारों के स्मरण मात्र से मनुष्य समस्याओं को जड़ से खत्म करने के लिए प्रेरित होता है। इन्होंने युवाओं को कार्य करने के लिए हमेशा प्रेरित किया। स्वामी विवेकानंद जी ने अपने जीवन मे कई समस्याओं का सामना भी किया। इसके बाद भी उन्होंने कभी हार नही मानी। वह आर्थिक संकट से जूझे परंतु उनके विचारों से, उनकी कला से उन्होंने जीवन मे सब कुछ हासिल किया। उन्होंने समूचे विश्व में भारत का नाम रौशन किया। पूरे  विश्व मे भारत को सर्वश्रेष्ठ स्थान दिलाया। उनके कार्यो की चर्चा केवल भारत मे नही बल्कि पूरे विश्व मे है। उनके कार्यो की सराहना आज भी देश विदेश में होती रही है। आत्मीय भाव रखने वाले स्वामी विवेकानंद जी लोगो की भावनाओ का सम्मान करते थे। वे अपने से बड़ो व अपने से छोटे सभी के प्रति आदर रखते थे।उन्होंने अपने जीवन में गरीबों के लिए भी बहुत कुछ किया। उनके कारण कई लोगो को जीवन दान भी मिला।

Life history of Swami Vivekananda in Hindi

प्रस्तावना-  स्वामी विवेकानंद जी आध्यात्मिक व्यक्ति थे। वे बचपन से ही ईश्वर में आस्था रखते थे। उनके मन मष्तिष्क में योग, संस्कृत, यजुर्वेद व अनंत ज्ञान का सागर होता था। उन्होंने देश के विकास में अपनी भूमिका सुनिश्चित की। उन्होंने अपनी शिक्षा का इस्तेमाल लोगो के विकास के लिए किया। उनका सीखा हुआ ज्ञान आमजन के काम आया। वह एक प्रखर वक्त थे। जिनके तर्क के आगे कोई खड़ा नही हो पाता था। वे अच्छे वक्ता के साथ पढ़ाई व खेल खुद में भी उज्जवल थे। उन्हें योग्य बनाने में उनके परिवार का विशेष योगदान रहा।उस वक़्त देश के युवा उनके तर्कों से, उनकी वाणी से, उनके विचारों से काफी प्रभावित थे। और यह दौर कभी थमा ही नही क्योंकि आज तक युवाओं को प्रेरणा देने वाले उनके विचार जीवित है। जो हर दूसरे युवा के जीवन को बेहतर बनाने में कार्यरत होते है। जिससे हर दूसरे युवा को हौसला मिलता है, वह अपनी नीव मज़बूत कर पाते है। इसी वजह से उनके जन्म दिवस को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। उनका जन्म 12 जनवरी को हुआ था। इसीलिए हर वर्ष उन्हें उस दिन याद किया जाता है। उनके बारे में जान आज भी युवाओं की रूह में, युवाओं के खून में हौसले का संचार निश्चित होता है। 

Swami Vivekananda Education

उनका बचपन एवं पढ़ाई काल- स्वामी विवेकानंद जी बचपन से तेजस्वी बालक थे। उनका जन्म  कलकत्ता में 12 जनवरी को मकर संक्रांति के दिन हुआ। वह बेंगोली परिवार से थे। उनके 9 भाई बहन थे। उनका बचपन से स्वामी विवेकानंद जी नाम नही था। उनका नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। उनके पिता विश्व नाथ दत्त कलकत्ता उच्च न्यायालय में अभिवक्ता थे। उनकी माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक महिला व गृहिणी थी। वह अपनी माता से बेहद प्रभावित थे। उन्हें उनकी माता के साथ समय व्यतीत करना बेहद पसंद था। उनकी माता से उन्होंने भगवान के बारे में जाना और उनके हृदय में जिज्ञासा पैदा हुई। उनके जीवन मे उनकी माता की विशेष भूमिका रही। स्वामी विवेकानंद जी के दादाजी संस्कृत व फारसी के विद्वान थे। इससे स्वामी विवेकानंद जी का उच्च व्यक्तित्व बना। उनके जीवन को उच्च बनाने के लिए बचपन से ही उन्होंने अपने परिवार से हर छोटी बड़ी सीख ली। उनकी माता के धार्मिक होने के कारण उनकी भी आध्यात्म में रुचि बढ़ी। उन्होंने संगीत में गायन व वाद्य यंत्र को बजाना सीखा। वह काफी छोटी उम्र से ध्यान साधना करते थे। सन्यासियों के प्रति उनमें विशेष प्रेम व श्रद्धा थी। वह दयालु व आत्मीय भाव के व्यक्ति थे। 1871 में जब वह 8 वर्ष के थे तब उनका दाखिल ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन इंस्टिट्यूट में कराया गया। 1879 में उन्होंने मेट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की और कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया। एक साल बाद कलकत्ता के स्कॉटिश चर्च कॉलेज में दाखिला लिया और फिलोसोफी पढ़नी शुरू की। उनके जीवन का यह समय काफी विशेष था। इस वक़्त उन्होंने पश्चिमी तर्क, यूरोपियन देशों के इतिहास आदि के बारे में विस्तार पूर्वक जाना। इससे उन्होंने काफी ज्ञानार्जन किया। 1884 में उन्होंने बैचलर ऑफ आर्ट की डिग्री प्राप्त की।

Guru of Swami Vivekananda

गुरु का मिलना व देश भ्रमण- उनका जीवन सवालों से भरा हुआ था। ईश्वर की सच्चाई वह जानना चाहते थे। वे ईश्वर पर विश्वास करते थे उन्हें जानना व देखना चाहते थे। इसी बीच काली मां के मंदिर पर स्वामी विवेकानंद जी की मुलाकात बाबा रामकृष्ण परमहंस जी से हुई। स्वामीजी के मन मे ना जाने कितने सवाल थे वह सन्यासियों में श्रद्धा रखते थे इसी वजह से उन्होंने बाबा रामकृष्ण जी से पहली ही मुलाकात एक सवाल किया। क्या आपने कभी भगवान को देखा है? परमहंस जी ने कहा कि हां बिल्कुल देखा है और बिल्कुल वैसे ही दिखा है जैसे तुम्हे अपने समक्ष देख रहा हु। स्वामी विवेकानंद जी को उनकी बातें दिलचस्प और सत्य प्रतीत हुई। इसी प्रकार उन्होंने उनसे कई सारे सवाल किए। जिसका उत्तर बाबा रामकृष्ण जी ने सटीक दिया। वह पहले व्यक्ति थे जिनसे स्वामी विवेकानंद जी प्रभावित हुए थे। इसके बाद बाबा रामकृष्ण परमहंस जी उनके गुरु बने। उनसे स्वामीजी ने बहुत कुछ सीखा और अपने जीवन मे उतारा। आध्यात्म में उनका प्रेम प्रबल होता जा रहा था। 1886 में बाबा रामकृष्ण परमहंस जी की मृत्यु हुई। उनका उत्तराधिकारी उन्होंने स्वामी विवेकानंद जी को बनाया। इसके बाद उन्होंने देश का भ्रमण किया। वह देश के कई हिस्सों में गए। वहां जाकर उन्होंने जातिवाद देखा। विभिन्न भेद भाव देखे।

उन्होंने लोगो को उपदेश दिए और यह ज्ञात कराया कि विकसित भारत के निर्माण के लिए बुराइयों को खत्म करना होगा। युवाओं को मेहनत करने के व संकल्प करने के उपदेश दिए। उनकी वाणी में सत्यता और एकता की भावना रहती थी।उनके व्यक्तित्व के कारण खेत्री के राजा ने उन्हें स्वामी विवेकानंद के नाम से सम्मानित किया। 

Swami Vivekananda Chicago Speech in Hindi

विदेश यात्रा व विश्व मे कीर्ति-  स्वामी विवेकानंद जी केवल भारत देश में प्रसिद्ध नही है। उन्होंने विदेश में भी अपने वर्चस्व को स्थापित किया। 1893 में वह विदेश भ्रमण कर रहे थे। उसी वर्ष अमेरिका के शिकागो में सम्पूर्ण विश्व के धर्मो का सम्मेलन आयोजित हुआ था। सभी ने अपने अपने अपने धर्म की पुस्तकें रखी। उस वक़्त स्वामी विवेकानंद जी ने भी वहां भारत के हिन्दू धर्म की छोटी सी पुस्तक भगवत गीता रखी। धीरे धीरे सभी ने अपने धर्म के भाषण दिए। जब स्वामी विवेकानंद जी की बारी आई तब उनके भाषण सुन सभा मे बैठे सभी लोग अभिभूत हो गए। उनके लिए ज़ोरदार तालियां बजने लगी। कहा जाता है कि वह तालियां सबसे लंबे समय तक बजायी गयी। उनकी वाणी ने चमत्कार कर दिया। लोगो ने हिन्दू धर्म को विदेश में भी सराहा। भारत को स्वामी विवेकानंद जी ने विदेश में कीर्ति दिलाई। हिन्दू धर्म को लोकप्रिय बनाने व आध्यात्म को बढ़ाने का कार्य करने के लिए उन्हें सारे संसार मे जाना जाता है। उनके एक भाषण ने लोगो के हृदय में आत्मीयता भरी। लोग उस वक़्त किसी धर्म के नही थे। सभी मे एकता का भाव था। भागवत गीता को उन्होंने विदेश में पहचान दिलाई। उनके तर्क इतने सटीक थे कि वहां बैठे सभी लोग उनके तर्क की आत्मीयता से भाव विभोर हो गया। ऐसे भाषण हिन्दू धर्म पर पहली बार उन्होंने ही दिए थे। उन्होंने विदेश में हिन्दू धर्म को सम्मान व भारत को आदर दिलाया। 1894 में उन्होंने न्यूयॉर्क में वेदांत सोसाइटी की स्थापना की। 1895 में योग की कक्षा करने लगे। उनकी प्रमुख शिष्य आयरिश महिला सिस्टर निवेदिता बनी। 1897 में उन्होंने भारत के दक्षिणी क्षेत्र में जगह जगह भाषण दिए। 4 जुलाई को रात्रि 9:10 मिनट पर उनकी मृत्यु हुई। उस दिन उन्होंने अपने शिष्यों को शुक्ल, यजुर्वेद, संस्कृत व्याकरण और योग की फिलोसोफी का ज्ञान दिया था। शाम 7 बजे उन्होंने अपने कक्ष में किसी को आने की अनुमति देने से इंकार कर दिया था। उनके शिष्यों के अनुसार स्वामी विवेकानंद जी ने महासमाधि ली थी। 

उपसंहार- स्वामी विवेकानंद जी ने अपने जीवन से सैंकड़ो लोगो को प्रेरित किया। उन्होंने राष्ट्र के प्रति, विश्व के प्रति, हिन्दू धर्म के प्रति, गरीबों के प्रति, युवाओं के प्रति आजीवन कार्य किये। के मानो दुसरो के जीवन मे बदलाव लाना व मनुष्य कल्याण ही उनका संकल्प रहा हो। उनका कहना था कि हम सभी को अपने जीवन मे एक संकल्प ज़रूर करना चाहिए और उसके प्रति अपना जीवन न्योछावर करना चाहिए। युवाओं से उनका कहना था कि उठो, जागो और तब तक काम करो जब तक तुम्हे सफलता ना मिले। 

ऐसे महापुरुष के बारे में जान हम सभी अभिभूत व भाव विभोर है। स्वामी विवेकानंद जी आज भी उनके विचारों के रूप में हम सभी के बीच है। 12 जनवरी,हर वर्ष युवा दिवस उनके दिए उपदेश को, उनके योगदान को हमे हमेशा याद दिलाता है।

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