सुभाष चंद्र बोस पर निबंध। subhash chandra bose essay in hindi

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सुभाष चंद्र बोस जिन्होंने स्वतंत्र भारत पाने के लिए पुरे विश्व में अवसर तलाशा और प्रयास भी किया । आजाद हिन्द फौज की नीव रखने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारत की आजादी प्राप्त करने के लिए क्रन्तिकारी सोच रखते थे । आज हम आपके लिए इस पोस्ट में subhas chandra bose essay in hindi ले कर आये है । सुभाष चंद्र बोस पर निबंध को आप स्कूल और कॉलेज इस्तेमाल कर सकते है । इस हिंदी निबंध को आप netaji subhas chandra bose in hindi for class 1, 2, 3 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 तक के लिए थोड़े से संशोधन के साथ प्रयोग कर सकते है।

Subhas Chandra Bose in Hindi

नेता जी सुभाष चंद्र बोस भारत के उन्ही क्रांतिकारियों में से एक है जिन्होंने देश को अपने योगदानों से लाभान्वित किया। जब देश मे कोई धीरे धीरे गुलामी को बढ़ा रहा था, तब नेता जी आमजन में आज़ादी की चिंगारी जला रहे थे। जब देश मे कोई कुरीतियों को बढ़ाता जा रहा था, तब नेता जी लोगों को लड़ना सीखा रहे थे। जब भारत मे कोई अत्याचारों की हदें पार कर रहा था, तब नेताजी सुभाषचंद्र बोस भारतीय सेना बना रहे थे। हमारे देश मे हमने कई क्रांतिकारी देखे है। हम हर एक के ऋणी है।परन्तु नेताजी सुभाषचंद्र बोस देश के वो भक्त थे जिन्होंने भारत देश की अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए विशाल रणनीति बनाई। नेता जी को आज भी देश के लोग याद करते है। उन्होंने देश को आज़ाद करने के साथ देश के लोगो की भी बेहद फिक्र की।जब जब देश मे,समाज मे अंग्रेजों ने अत्याचारों को बढ़ाया। नेताजी ने इसका विरोध जताया। वे भारत देश के महान देश भक्त थे। उनके कार्यों की लोग आज भी मिसाल देते है।आज भी वह आमजन के लिए प्रेरणा है। लोग अपने घरों में, दफ्तरों में, पुस्तकालयों में सुभाष चंद्र बोस की तस्वीर लगाते है। 

प्रस्तावना- नेताजी सुभाषचंद्र बोस एक ऐसे महापुरुष है, जिनके बारे में जितना जाने उतना कम है। उन्होंने अपने जीवन में एक सफल व्यक्ति होने के बावजूद देश की सेवा करना, देश को आज़ादी के मुकाम तक पहुचने का निर्णय लिया। उन्होंने दुनिया के लिए एक उदाहरण पेश किया है। अपने जीवन मे उन्होंने निजी जिंदगी को बेहतर करने के फैसले को ठुकरा कर लोगो की जिंदगी सुधारना ज़्यादा महत्वपूर्ण समझा। लोगों को कुरीतियों से बचाने के अथक प्रयास करे। उन्होंने अपने जीवन मे कभी स्वार्थ का सहारा नही लिया।जो भी कर्तव्य रहे उसे लोगो के प्रति निभाये। देश के खिलाफ बोलने वालों से लड़ गए। देश के लिए अपने पूरे जीवन को समर्पित किया। यही वजह है कि उनके अस्तित्व के चर्चे सिर्फ भारत तक नही है।उनके कार्यों की कीर्ति विदेशों में भी है। वहा के लोग भी उनके प्रति अपने हृदय में आत्मीयता का भाव रखते है। उन्होंने देश विदेश सभी जगह ख्याति बटोरी। लोगो में स्वराज की चाह स्थापित करने में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। अंग्रेजों से लड़ने की उनकी नीति आज भी सराहनीय है। जब आमजन अपने ही देश से पूर्णतः रुबरूं नही थे, उस वक़्त नेताजी विदेशों से मदद लेकर भारत के लिए रणनीति तैयार करने में डटें हुए थे। 

बचपन एवं पढ़ाई काल- नेता जी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 में ओरिसा, कटक  में हुआ। उनके पिता जी जानकी नाथ बोस पैशे से वकील थे।एवं माता का नाम प्रभावती बोस था। सुभाष चंद्र बोस के 13 भाई बहन थे। सुभाष चंद्र बोस बचपन से ही तेजस्वी बालक थे। वे पढ़ाई में अव्वल थे। उन्हें पढ़ाई में बेहद दिलचस्पी थी। यही वजह थी कि वह अपने शिक्षकों के भी पसंदीदा विद्यार्थि थे।वे प्रोटेस्टेन्ट यूरोपियन स्कूल से पढ़े।फिर प्रेसिडेंसी कॉलेज में आगे की पढ़ाई की। नेता जी सुभाष चंद्र बोस विवेकानंद जी व रामकृष्णजी के विचारों से प्रभावित थे। उन्हें अब समझ आने लगा थे कि उनकी शिक्षा से ज्यादा जरूरी इस वक़्त देश की रक्षा है। वे अब देश के लिए कुछ करना चाहते थे। वे चाहते थे कि देश अब दास्तान की जंजीरों से मुक्त हो। उन्होंने सोच लिया कि पढ़ाई छोड़ व देश के लिए व देश के लोगों के हित के लिए अपना जीवन जिएंगे। उनकी देश भक्ति का पहला नमूना तब देखने को मिला जब वे एक बार अपने ही प्रोफेस्सर साहब से लड़ पड़े। प्रोफेस्सर साहब ने देश के लोगों के खिलाफ कुछ अभद्र टिप्पणी की। जिसको सुन नेता जी भड़क उठे। और अपने ही प्रोफेसर साहब से लड़ पड़े। ये पहली चिंगारी देश के प्रति देखने को मिली थी। 1918 में स्कॉटिश चर्च कॉलेज से बी.ए की डिग्री हासिल की। वे जल्द से जल्द देश की सेवा में लगना चाहते थे। परंतु उनके पिता चाहते थे कि वे अपने जीवन मे कामयाब होकर नौकरी करे। उनके पिता जी ने उन्हें पढ़ने के लिए कैम्ब्रिज के कॉलेज में भेज दिया। वहाँ उन्होंने इंडियन सिविल सर्विसेज में चौथी रैंक हासिल की। वे बड़े अधिकारी बन गए थे। परंतु उन्हें अंग्रेजों के राज में नौकरी करना कदापि मंज़ूर नही था। इसीलिए उन्होंने वो काम नही किया। इतने बड़े पद को उन्होंने एक झटके में ठुकरा दिया।वे देश के लिए कुछ करना चाहते थे, इसीलिए उन्होंने अपने जीवन को फिर उसी दिशां में लगाना ठीक समझा। वे अपने पढ़ाई काल मे सफल इंसान थे। परंतु उनके लिए वो सफलता मान्य नही थी। उनकी नज़रों में देश आजाद हो , देश मे स्वराज हो ये मान्य था। यही वजह रही कि उन्होंने अपना आगे का सम्पूर्ण जीवन देश को दिया।

प्रारंभिक योगदान-  नेता जी सुभाषचंद बोस ने अब देश के लोगों को आज़ादी के बारे में ज्ञात कराने की ठान ली थी। वे चाहते थे कि भारतीयों के हृदय में स्वतंत्रता की चिंगारी जागे। इसके लिए उन्होंने एक न्यूज पेपर प्रिंट करना शुरू किया। उस न्यूज़पेपर का नाम स्वराज रखा। चितरंजनदास  उनकी प्रेरणा बने। चितरंजनदास भड़काऊ भाषण दिया करते थे। उनके न्यूज़पेपर के कारण वे लोगो मे पहचाने जाने लगे। 1923 में उन्हें ऑल इंडिया युथ का प्रेसिडेंट चुन लिया गया। इससे उन्हें लोगो तक पहुंचने में ज्यादा आसानी हुई। वे लोगो मे स्वराज की चाह बढ़ाते चले गए। जब इसके बारे में अंग्रेजों को खबर प्राप्त हुई, तब नेता जी को लोगो को भड़काने के जुर्म में जेल में जाना पड़ा। उन्हें टी.बी की बीमारी भी हुई। परन्तु उन्होंने कभी हार नही मानी वे जल्द स्वस्थ हुए।1927 में वह जेल से छूटे। इसके बाद में फिर से वे स्वराज के मांग में जुट पड़े। इसके बाद वे कांग्रेस पार्टी से जुड़े। वे कांग्रेस के जनरल सेक्रेटरी बने। वहां वे जहारलाल नेहरू जी के साथ आज़ादी की जंग में कूद पड़े। आज़ाद भारत का सपना आंखों में सजाये उस वक़्त लोग अपनी तकदीर बदलने को भी तैयार थे। वे लोग हाथों की लकीरों को बेशक नही बदल सकते थे, परंतु अपने साथ हो रहे व्यवहार के खिलाफ आवाज उठा रहे थे। आज़ादी की लड़ाई सालों तक चलती रही , ये जवान थे जो जान देते रहे और भारत को आज़ादी की दिशा में आगे बढ़ाते रहे। नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने अपने आप को और योग्य बनाने का सोचा। वे 1930 में  यूरोप गए, वहां जाकर उन्होंने पार्टी को और अच्छी तरह से चलाना सीखा। किस तरह से वे अपने देश की पार्टी में और सुधार कर सकते है इसके बारे में जाना। इस दौरान उन्होंने अपनी किताब ‘दी इंडियन स्ट्रगल’ पब्लिश की। लंदन में यह किताब पब्लिश हुई। जिसे ब्रिटिश सरकार ने भारत मे बैन करवा दिया।उस किताब पर पूर्णतः रोक लगवा दी। अंग्रेज़ यह नही चाहते थे कि भारतीय ऐसी कोई भी किताब पढ़े जो आम लोगों को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जाने की राय दे। नेताजी भारत वापस आने पर कांग्रेस के प्रेसिडेंट चुने गए। परंतु महात्मा गांधीजी को उनकी हिंसक नीतियां पसंद नही थी। गांधी जी अहिंसा के पुजारी थे। वे देश को अहिंसा के बल पर आज़ादी दिलाना चाहते थे। वही नेताजी सुभाषचंद्र बोस का यह मानना था कि अहिंसा के बल पर आज़ादी नही मिल सकती।हमे आज़ादी के लिए बलिदान देना होगा, त्याग करना होगा। परंतु नेताजी गांधी जी का सम्मान करते थे। उन्होंने गांधी जी की असहमति को जान कांग्रेस के प्रेसिडेंट पद से स्तिफा देने का निर्णय लिया। उन्होंने बिना किसी के कहे स्वयं का स्तिफा दिया।

विदेशों से समर्थन व अन्य उपलब्धियां-  नेता जी कांग्रेस से बेशक हट गए। पर देश को स्वतंत्रता दिलाने का उनका जस्बा कायम रहा। उन्होंने अपने प्रयासों में कमी नही छोड़ी। वे अन्य देशों में गए अलग अलग देशों से भारत को समर्थन दिलाने की कोशिश की।ऐसे में ब्रिटिश सरकार पर भी दवाब पढ़ने लगा था। दूसरा विश्व युद्ध आने वाला था तब ब्रिटिश सरकार भारत की आड़ में, भारत के लोगों की मदद से दूसरा विश्व युद्ध लड़ना चाहती थी। परंतु नेताजी ने इसका जमकर विरोध जताया। नेताजी नही चाहते थे कि अंग्रेजों के कारण भारतवासियों का लहू बहे।उन्होंने लोगों को समझाना सही समझा।वे लोगों को इसके बारे में सचेत कर रहे थे। जिससे लोग अंग्रेजों का विरोध करे। लेकिन एक बार फिर अंग्रेजों ने उन्हें जेल में डाल दिया। वहां नेताजी ने भूख हड़ताल की जिसके कारण सातवें दिन उन्हें जेल की बजाए सी.आई.डी द्वारा उनही के घर मे नज़रबंद कर दिया।वे सी.आई.डी को चाखमा देकर पठान का भेष बनाकर वहां से भाग निकले। इसके बाद नेताजी ब्रिटिश के दुश्मन देश जर्मनी जाकर वहां समर्थन हासिल कर आये। विश्व युद्ध मे जब जर्मनी हार रही थी तब नेता जी जापान गए, काफी प्रयास के बाद वहां के प्रधानमंत्री से समर्थन मिला। फिर जापान के साथ मिलकर नेताजी ने आज़ाद हिंद फौज की स्थापना की। देश के लिए सैना तैयार की। जिसे लोग ‘इंडियन नेशनल आर्मी’ के नाम से जानते थे। साउथ ईस्ट एशिया में रह रहे भारतीय के सहयोग से आई.एन.ए की सेना में मजबूती आयी।

उस वक़्त नेता जी ने नारा दिया..  

   तुम मुझे खून दो…. 

   मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा।

इससे ब्रिटिश में खिलाफ सबमे क्रांति आयी। लेकिन विश्व युद्ध मे जापान की हार की वजह से हथियार मिलना बंद हो गए।आई. एन. ए  को आर्थिक मदद व हथियार ना मिलने की वजह से वह बंद हो गयी। 18 अगस्त 1945 में एक दुर्घटना में नेता जी की मृत्यु हो गयी। 

 उपसंहार- नेता जी की मृत्यु का भारतवासियों को गहरा सदमा लगा। परंतु नेता जी का सपना देश को आज़ाद करने का कुछ वक्त बाद ही 1947 में पूरा हो गया। नेता जी के प्रयासों का काफी असर रहा। उनके प्रयास व्यर्थ नही गए। वे चाहते थे देश के लोग कुरीतियों का विरोध करे, लोगों ने वही किया। वे चाहते थे कि देश के लोगों में स्वराज की चाह हो, लोगों के हृदय में स्वराज की चाह भी आई।

उनके प्रयासों ने सोते देश को गहरी निद्रा से जगाया,

देश के लोगों को दास्तान की जंजीरों से सदा के लिए मुक्त कराया,

नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने देश को कुछ इस कदर अपना बनाया,

भारत की भूमि को गर्व से स्वराज का तोहफा दिलाया.. भारत की भूमि को गर्व से स्वराज का तोहफा दिलाया..।

” जय हिंद..! ” 

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