महात्मा गांधी पर निबंध। mahatma gandhi essay in hindi

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महात्मा गाँधी संसार विख्यात एक ऐसी प्रतिभा जिसको किसी भी परिचय की आवश्यकता नहीं है। आज इस लेख में हम mahatma gandhi essay in hindi लेकर आये है।  स्कूलों में कॉलेज में अक्सर about gandhiji in hindi पुछा जाता है। भारत में गाँधी जी के विचार या उनके जीवन से सिखने को बहुत कुछ मिलता है। लोगो को एक संक्षिप्त झलक देने की कोशिश इस पोस्ट में की जा रही है। 

ये भूमि ने जवानों के बलिदान को देखा है,

आध्यात्म की कसौटी पर हिंदुस्तान को देखा है,

हिंसा पर अहिंसा के सम्मान को देखा है,

सबके विचारों के आदर्श गांधी महान को देखा है।

mahatma gandhi essay in hindi
Mahatma Gandhi Jayanti

मोहनदास करमचंद गांधी, जिन्हें लोग ‘महात्मा गांधी’, ‘राष्ट्रपिता’  तथा बापू के नाम से जानते है। जिन्होंने स्वतंत्र भारत का सपना देखा। विचारों की क्रांति से देशवासियों को एकत्रित किया और ब्रिटिश शासन को जड़ से खत्म कर दिया। स्वतंत्र भारत हज़ारों दशकों बाद भी  महात्मा गांधी जी का नाम याद रखेगा। अथक प्रयास, कठोर परिश्रम कर गांधी जी ने देश को दास्तान की जंजीरों से मुक्त किया। आध्यात्मिक और राजनैतिक दोनो ही भूमिका में गांधी जी निपुण थे।

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प्रस्तावना-  2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में करमचंद गांधी और पुतलीबाई के यहां उनकी सबसे छोटी संतान के रूप में गांधी जी ने जन्म लिया। 2 अक्टूबर अर्थात गांधी जी के जन्म दिवस को गांधी जयंती के रूप में मनाया जाता है। देश को स्वतंत्र करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले, सबका भला चाहने वाले थे गांधी जी। देश मे अंग्रेजों की गुलामी ना करने की पहल गांधी जी ने शुरू की। अपमान, अत्याचार, पीड़ा सबके खिलाफ आवाज़ उठाई। पर कभी भी हिंसक होने का समर्थन नही किया।  अहिंसा के मार्ग पर देश ने आज़ादी पायी। गांधी जी ने सत्य से, अहिंसा से, विश्वास से भारत को आज़ादी दिलाई। कभी भी  छल-कपट से लोगो के हृदय में स्थान नही बनाया। 

गांधी जी का बचपन और पढ़ाई काल-   भारत को आज़ादी तक ले जाने वाले गांधी जी एक सामान्य व्यक्ति थे। खेल-कूद में वह सामान्य थे। उनका बचपन श्रवण कुमार की, भक्त प्रह्लाद की,राजा हरिश्चन्द्र की कहानियां सुनकर बीता। उन्होंने कहानियों से सुनी सीख को जीवन मे उतारा। वह जब सिर्फ 13 वर्ष के थे तब उनका विवाह उनसे एक साल बड़ी कस्तूरबा से हुआ।

वे डॉक्टर बनना चाहते थे परंतु वैष्णव परिवार में चिड़ा-फाड़ी की अनुमति नही थी। 1888 में गांधी जी ने बैरिस्टर बनने के लिए इंग्लैंड जाने का विचार किया। तब उनकी माँ पुतली बाई ने उनसे तीन वचन लिए। पहला की विदेश में जाकर गांधी जी मदिरा पान नही करेंगे। दूसरा किसी स्त्री पर आसक्त नही होंगे और तीसरा की विदेश में जाकर मांसाहार नही करेंगे। तीनो वचन के साथ अपनी पत्नी कस्तूरबा और पुत्र को छोड 1888 में वह इंग्लैंड के लिए रवाना हुए। उस समय विदेश में मांसाहार का चलन था परंतु उन्होंने वहां शाखाहारी लोगो को इकट्ठा किया और शाखाहार शुरू किया।

गांधी जी राम नाम को शरुवात से नही मानते थे। वह बताते है कि एक बार वह अपने दोस्त के साथ रात्रि में कमरे से बाहर गए। वहां वे एक स्त्री पर वह मोहित हुए। उनका दोस्त स्त्री के पीछे चला गया। गांधी जी जाने ही वाले थे परंतु माता को दिया हुआ वचन याद करके वह तुरंत अपने कक्ष में लौट आये। वह बताते है कि मानो भगवान ने मुझे गलत रास्ते पर जाने से बचा लिया। उन्होंने उस दोस्त की कभी आलोचना नही की। 4 वर्ष बाद गांधी जी इंग्लैंड से भारत आये। बॉम्बे और राजकोट में वकालत की तैयारी की पर कामयाबी नही मिली।

साउथ अफ्रीका में गांधी जी के 21 साल- 1893 में दादा अब्दुल्लाह नाम के एक व्यापारी ने उन्हें साउथ अफ्रीका बुला लिया। साउथ अफ्रीका में भी भारत की तरह ब्रिटिश हुक़ूमत थी। 23 साल की उम्र में साउथ अफ्रीका पहुंचे मोहनदास को वहां तमान भेद-भाव का सामना करना पड़ा। वहां पर अलग रंग और नस्ल के कारण उन्हें ट्रैन के पहले दर्जे से बाहर फेंक दिया गया। गांधी जी ने जवाब में अफसरों से कहा कि मेरे पास भी वही टिकट है जो आपके पास है। परंतु नस्ल, रंग-रूप से पिछड़ा जान उन्हें बाहर फेंक दिया गया। उनके स्थान पर कोई और होता तो वहां से शायद वापिस लौट जाता। परंतु गांधी जी वहां रहकर 21 साल तक कुरीतियों और अत्याचारों के खिलाफ लड़े। गांधी जी का मानना था कि उन्होंने पढ़ाई बेशक इंग्लैंड से की है लेकिन साउथ अफ्रीका में रहकर उन्होंने बहुत कुछ सीखा है। जिससे उन्हें भारत को आज़ादी दिलाने में भी मदद मिली। गोपाल कृष्ण गोखले के निवेदन पर भारत को अंग्रेज़ी हुक़ूमत से स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से 1915 में गांधी जी भारत लौट आये।

भारत की आज़ादी में महत्वपूर्ण वर्ष-  भारत को आज़ाद कराने की पहल गांधी जी के भारत लौटने पर शुरू हुई। इतिहास इसी दिन के इंतज़ार में था। भारत पर अंग्रेज़ी शासन के अंत की शुरुवात 1917 में हुई ।

1917-  भारत की आज़ादी में गांधी जी का पहला आंदोलन चंपारण सत्याग्रह 1917 में शुरू हुआ। बिहार के चंपारण जिले के लोगो से अँग्रेज़  ज़बरदस्ती नील की खेती करा रहे थे। गांधी जी ने इसके विरोध में चंपारण सत्याग्रह चलाया था। इसी वर्ष गुजरात के खेड़ा जिले में बाढ़ और अकाल की स्थिति होने के बावजूद लोगो से अँग्रेज़ अत्यधिक कर वसूल रहे थे। जिस पर गांधी जी ने अहिंसक विरोध किया और अंग्रेजों को समझौता करने पर मजबूर किया।

गांधी जी के सफल आंदोलन के चर्चे भारत वासियों तक आग की तरह फैले। इस आंदोलन की वजह से उन्हें भारत मे कीर्ति मिली। धीरे-धीरे उन्हें गुरु रबिन्द्रनाथ टैगोर द्वारा “महात्मा”  और नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा  दी हुई “राष्ट्रपिता” की उपाधि भी सर्वव्यापक हो गयी। आम जनमानस उन्हें महात्मा और बापू कहकर बुलाने लगे। इसके बाद भारतीय मुसलमानों के खिलाफत मूवमेंट को गाँधीजी ने सहयोग प्रदान कर भारतीय मुसलमानों को भी अपने पक्ष में ले लिया।

1919- लोगो को विभिन्न आंदोलन का हिस्सा बनते देख अंग्रेज ने इसके खिलाफ 1919 में रॉलेट एक्ट लाये। जिसमे किसी भी भारतीय को बिना मुकदमा चलाये उन्हें जेल में बंद किया जा सकता था। गांधी जी ने इसके खिलाफ असहयोग आंदोलन चलाया। गांधीजी ने देशवासियों से अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध करने को कहा। लोग अंग्रेज़ी कपड़ो और वस्तुओं को जलाने लगे।

13 अप्रैल 1919 को जब ऐसा ही विरोध प्रदर्शन जलियावाला बाग में किया जा रहा था तब जनरल डायर ने सेंकडो लोगो को गोलियों से भुनवा दिया। यह घटना आज  भारत वासियों की रूह को झंझोड़ देती है। यह सबके बाद भी गांधीजी अहिंसा के मार्ग पर रहे और पूरे देश को आंदोलन का हिस्सा बना दिया। 

1922-  इस वर्ष चोरी-चौरा काण्ड हुआ। जिसमे जनता ने आक्रोश में आकर पुलिस वालों को ज़िंदा जला दिया। जनता को हिंसा के मार्ग पर उतरते देख गाँधीजी ने आंदोलन वापिस ले लिया और कुछ साल उन्हें जेल में रहना पड़ा।

1930-जेल से रिहा होकर  गाँधीजी ने आंदोलन को जड़ से मजबूत किया। इस वर्ष गांधी जी ने नमक पर टैक्स  लगाने का विरोध किया। गाँधीजी के अहमदाबाद से लेकर दांडी तक 400 किलोमीटर की यात्रा की और कानून तोड़ते हुए खुद नमक बनाया। इस आंदोलन को अपार जन समर्थन मिला। विदेश की मीडिया ने भी इसे प्रमुखता से उछाला।

1942 से अगस्त 1947-  भारत की आज़ादी में ये जवानों के बलिदान का साक्षात्कार है। 1942 में गांधी जी के नेतृत्व में एक बड़ा आंदोलन “भारत छोड़ो आंदोलन” हुआ। ये भारत को स्वतंत्र करने का आखरी आंदोलन था। जब दूसरे विश्व युद्ध की शुरुवात होने वाली थी तब ब्रिटिशर्स  विश्व युद्ध मे भारत की हिस्सेदारी चाहते थे। देखते ही देखते भारत मे अमेरिकी सेना आने लगी।धीरे-धीरे लोगो पर अत्याचार बढ़ने लगे। जिन देश को आज़ादी मिलनी थी उसमें भारत का कोई नामो निशान नही था। ऐसी परिस्थितियों में गांधी जी ने आज़ादी का सबसे बड़े आंदोलन भारत छोड़ो आंदोलन की पहल की। जिसका हिस्सा पूरा देश बना। गांधीजी ने जन मानस से अंतिम अहिंसावादी संघर्ष जारी रखने को कहा। गांधी जी ने लोगो को “करो या मरो” का नारा दिया। सभी को आज़ादी का स्वप्न दिखाया। लोगों ने जान की परवाह किये बगैर स्वराज की मुहिम की। हज़ारों की संख्या में स्वतंत्रता सैनानी मारे गए। असंख्य लोग घायल व गिरफ्तार हुए । गांधी जी ने पूरे देश को संगठित कर दिया था। हर गांव हर शहर के लोग आंदोलन का हिस्सा बने।

अंततः 15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रेज़ी शासन से आज़ाद हुआ। गांधीजी ने अंग्रेज़ी साम्राज्य से भारत को पूर्ण स्वराज दिलाया। 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे द्वारा गांधीजी की गोली मार कर हत्या कर दी गयी

आज़ाद भारत की सबसे बड़ी शव यात्रा गांधीजी की थी जिसमे 10 लाख से भी अधिक लोग उनके साथ चल रहे थे। 15 लाख लोग रास्ते मे खड़े थे।  कुछ तो खम्बे से पर खड़े थे।

उपसंहार- गाँधीजी सिर्फ शरीर से मृत हुए परंतु लोगो के दिल से उन्हें कैसे कोई विलुप्त कर सकता है। आज अगर हम सुरक्षित, आज़ाद और प्रसन्न है, तो गांधी जी और हमारे देश के शहीदों की कुर्बानियों से। गांधीजी का सिद्धांत, सत्य, अहिँसा, आत्म-विश्वास, सादगी आज भी सराहनीय है। गांधीजी ने असत्य पर सत्य की जीत, हिंसा पर अहिंसा की विजय का प्रमाण दिया है। गांधी विश्वास का नाम है, गांधी सत्य का नाम है, गांधी जीत का नाम है।

विचारों की अग्नि से गाँधीजी ने मुहिम चलाई थी, 

जब भारत को आज़ादी दिलाने की बारी आई थी।

ना झुके थे वो कभी अंग्रेजों के आगे,

बिना एक शस्त्र उठाये भी उन्होंने

आज़ादी की लड़ाई जीत के दिखाई थी।

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