परशुराम जयंती पौराणिक कथाएं और जानकारी I Parshuram Jayanti

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परशुराम जयंती हिन्दू मान्यताओं के अनुसार बैसाख महीने के शुक्ल पक्ष के तृतीया (तीसरे दिन) मनाई जाती है I परशुराम जी एक ऋषि थे I परशुराम जी के पिता का नाम जमदग्नि और माता जी का नाम रेणुका था I ऋषि जमदग्नि सप्तऋषिओ में से एक ऋषि थे I परशुराम जी को भगवान् विष्णु जी का छठा अवतार भी माना गया है I परशुराम जी का नाम परशुराम उनके शस्त्र फरसा के कारण पड़ा I

Parashurama Jayanti Date & Time 2020 25th April, Saturday

परशुराम की प्रारम्भिक शिक्षा और शस्त्र

परशुराम जी का नाम शिव जी के द्वारा दिए परशु को धारण किये रहने के कारण परशुराम पड़ा है I उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा विश्वामित्र जी और ऋचीक ऋषि से प्राप्त की ऋचीक ऋषि से शिक्षा प्राप्ति के समय सारंग नाम वैश्णव धनुष और वैश्णव मंत्र की प्राप्ति हुई I

कैलाश गिरीपर्वत पर भगवान् शिवजी के आश्रम में विद्या प्राप्ति के दौरान भगवान् शिव द्वारा परशु शास्त्र प्राप्त किया I भगवान् शिव से उन्हें त्रैलोक्य विजय कवच और मंत्र कल्पतरु भी प्राप्त हुए I

परशुराम जी और पौराणिक महत्व

प्राचीन पुराणों में परशुराम जी का उल्लेख मिलता है I परशुराम जी भृगु वंशी होने के कारण बहुत ही क्रोधी स्वाभाव के थे उन्होंने पृथ्वी को 21 बार क्षत्रिय विहीन कर दिया था I परशुराम जी अपने गुरुजनो, माता पिता के बहुत ही प्रिय और आज्ञाकारी रहे है I उनके विचार से किसी भी प्रदेश के राजा का दायित्व है की वह धर्म और वैदिक प्रचार में अपना पूरा योगदान दे परन्तु इसके विपरीत राजा केवल अपने प्रजा द्वारा वंदनीय होने में अपना पूरा समय लगा देते है I परशुराम जी ब्राह्मण ऋषि होते हुए भी एक क्षत्रिय थे उन्होने वेदो में भार्गव नाम से सम्बोधित दिया गया है I उनके शिष्यों में बड़े बड़े योद्धा और क्षत्रिय वंश के लोग रहे है जैसे :-

देवव्रत अर्थात भीष्म जी ने अपनी शास्त्र शिक्षा परशुराम जी से ली थी I

गुरु द्रोण  जिन्होंने कौरवो और पांडवो को शस्त्र शिक्षा दी थी I

कर्ण ने भी अपनी शास्त्र विद्या परशुराम जी से ही ली थी I

परशुराम जी का इतिहास और कथाये

परशुराम जी की जन्म की कहानी बहुत ही रोचक है I प्राचीन काल में कनौज प्रदेश में गाधि नाम के एक राजा राज करते थे उनकी पुत्री का नाम सत्यवती था I राजा गाधि ने अपने पुत्री सत्यवती का विवाह भृगुनन्दन ऋषि से कर दिया इन्ही की संतान के रूप में जमदग्नि जी का जन्म हुआ I जमदग्नि ऋषि का विवाह प्रसेनजीत की कन्या रेणुका से हुआ I जमदग्नि और रेणुका के पांच पुर्त्र हुए रुक्मवान, सुखेन, वसु, विश्वानस और परशुराम I

परशुराम जी की माता जी रेणुका सदैव गंगा तट से हवन आदि के लिए प्रातः काल गंगा जल लेने जाती थी I परन्तु एक दिन गन्धर्व और अप्सराओ के साथ गंगा तट पर विहार कर रहे थे रेणुका यह देख आसक्त हो गयी और इसके के कारण उनका ध्यान समय से हट गया और वह हवन काल बीत जाने के पश्चात आश्रम पहुंची यह ऋषि जमदग्नि क्रोधित थे उन्होंने दंडस्वरूप अपने सभी पुत्रो को माता रेणुका का वध करने का आदेश दिया परन्तु कोई भी यह न कर सका परन्तु पिता की आज्ञा का पालन करते हुए श्री परशुराम जी ने अपनी माता का शीश काट दिया और बीच में आने वाले अपने भाइयो को का भी वध कर डाला I जमदग्नि अपने पुत्र की निष्ठा और आज्ञाकारी स्वाभाव से बहुत प्रसन्न हुए उन्होंने वर मांगने को कहा तब परशुराम जी ने सभी भाइयो और अपनी माता रेणुका को पुनर्जीवित करने की याचना की और इस सन्दर्भ में उनकी स्मिर्ति नष्ट हो जाने का वरदान माँगा I

क्षत्रिय नाशक परशुराम जी

प्राचीन ग्रंथो और पुराणों में सहस्त्रार्जुन का उल्लेख मिलता है जिसने भगवान् दत्तात्रेय को प्रसन्न कर एक सहस्त्र भुजाये प्राप्त कर ली थी जिसके कारण उसका नाम सहस्त्रबाहु पड़ा I

एक दिन वन में आखेट करते हुए वो एप सेना दल के साथ जमदग्नि मुनि के आश्रम में पहुंचे वह पे उन्होंने देवराज इन्द्र द्वारा कपिला कामधेनु गाय देखि जिसके दूध से जमदग्नि मुनि ने सहस्त्रबाहु के पुरे सैन्य दल की भूख शांत कर दी थी I लोभ में आकर राजा ने कामधेनु गाय को बलपूर्वक छीन लिया जब यह बात परशुराम जी को पता चली तो उन्होंने सहत्रबाहु की सारी भुजाये काट कर उसका वध कर दिया I सहस्त्रार्जुन के पुत्रो ने अपने पिता के वध का प्रतिशोध  परशुराम जी के पिता जमदग्नि ऋषि की ध्यान मुद्रा में विलीन अवस्था में हत्या कर के ली I जमदग्नि ऋषि की मृत्यु के कारण परशुराम की माता रेणुका जी भी सती हो गयी I राजा पुत्रो के इस घृणित कार्य उपरांत उन्होंने सहस्त्रार्जुन के पुरे वंश का विनाश कर दिया और पूरी पृथ्वी को 21 बार क्षत्रिय विहीन कर डाला अंत में महर्षि ऋचीक के कहने पे परशुराम जी शांत हुए और अश्मेघ यज्ञ करवा और पूरी पृश्वी महर्षि कश्यप को दान कर दी और महेंद्र पर्वत पर आश्रम बना कर रहने लगे I