भगत सिंह पर निबंध। bhagat singh essay in hindi

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शहीद भगत सिंह जी गुलाम भारत के एक महान क्रन्तिकारी थे। भारत की आज़ादी के लिए उनका बलिदान भारत कभी नहीं भूल सकता है। भगत सिंह भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए अपने प्राण की आहुति देने वाले क्रांतिकारियों में से एक थे। आज हम आपके लिए इस पोस्ट में bhagat singh essay in hindi ले कर आये है । इस भगत सिंह पर निबंध को आप स्कूल और कॉलेज इस्तेमाल कर सकते है । इस हिंदी निबंध को आप essay on bhagat singh in hindi for class 1, 2, 3 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 तक के लिए थोड़े से संशोधन के साथ प्रयोग कर सकते है।

 क्रांतिकारियों मे क्रांति की पहचान थे वो, देश के लिए जान देने वाले जवान थे वो,

स्वाभिमान भी उनसे आगे बढ़ने की होड़ करता रहा,  अंग्रेजों को घुटनो पर टिका देने  वाले भगत महान थे वो। 

भारत के स्वतंत्रता सैनानी में सबसे प्रिय वीर भगत सिंह जी थे। आत्मविश्वास, बहादुरी, स्वाभिमान एवं विरोध की मिसाल थे भगत सिंह। वे एक ऐसा चरित्र है जिनके बारे में हम जितना भी जान ले कम ही होगा। आज जो भी लोग भगत सिंह के बारे में नही जानते उनके हृदय में देश के साथ आज भगत सिंह के प्रति भी प्रेम उमड़ आएगा। ऐसी शख्शियत भगवान ने करोड़ों में से एक बनाई है। जो देश के युवा के लिए एक रौचक उदहारण बनकर उभरते हैं। भगत सिंह सभी स्वतंत्रता सैनानियों में से एक अहम किरदार थे।इन्होंने देश के लोगो को जो सीख दी वह स्वतंत्रता के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण व अहम थी। 

प्रस्तावना-  भगत सिंह के जीवन के बारे में जानने से पहले उनके कुछ विचारों से रुबरूं होने की आवश्यकता है। भगत सिंह ईट का जवाब पत्थर से देने वाले व्यक्ति थे। वे देश के लोगो की जान का बदला जान से लेते थे। अपने देश मे अपने ही लोगों के साथ ज्यातकी उन्हें बर्दाश नही थी। वे अपने जीवन के किस्सों से उदहारण देना चाहते है कि हमारा देश सिर्फ हमारा है। कोई और का इसपर कोई अधिकार नही।वे इतने साहसी थे कि वे जिये भी शान से और आज़ाद भी शान से हुए।उन्होंने अपनी बहादुरी से व अपने दृढ़ संकल्प से अंग्रेजों को अपनी जिद की आगे झुका दिया था। भगत सिंह का जीवन उनके प्रति आत्मीयता का भाव पैदा करता है। गर्व देश की भूमि के साथ देश के जवानों की कुर्बानियों का होता है। जिन्होंने अपना सर्वस्व देश को त्याग कर स्वराज की माँग की। 

 बचपन- 28 सितम्बर 1907 को पंजाब के लयालपुल जिले के बंगा गांव में भगत सिंह का जन्म हुआ। सरदार किशन सिंह व विद्यावती कौर की खुशी आज दुगनी थी। आज उनके यहां पुत्र भी हुआ और भगत सिंह के चाचाजी को आज जेल से रिहा किया गया था। भगत सिंह का परिवार भी देश भक्त था। ऐसे महान परिवार में महान क्रांतिकारी भगत सिंह का जन्म हुआ। जिन्होंने अपने जीवन से सबको अचंभे में डाल कर रख दिया। मिसाल हो तो भगत सिंह जैसी जिन्होंने देश के लिए जीने व देश के लिए ही मारने की ठानी थी। वे अंग्रेजों के बचपन से ही विरोधी थे। उस समय ब्रिटिश सरकार थी। और उस वक़्त सरकारी विद्यालय भी ब्रिटिश सरकार के ही थे। उन्होंने वो विद्यालय में पढ़ाई ना करके आर्य समाज के दयानंद वैदिक विद्यालय से शिक्षा ग्रहण की।बचपन से ही ब्रिटिशर्स के प्रति उनके हृदय में आक्रोश था। उनके बचपन की एक घटना उनके पिता जी को हैरान करने वाली थी। एक बार भगत सिंह अपने पिताजी के साथ खेत पर गए। वहां उन्होंने अपने पिता जी से पूछा की आप ये अनाज बोते हो आपको इससे क्या मिलता है। पिताजी ने कहा कि बेटा इससे ढेर सारी फसल उगती है। इसे हम बेच देते है। तभी भगत सिंह सिंह 12 वर्ष के भी नही थे। भगत सिंह ने अपने पिता जी से कहा फिर आप बंदूक क्यों नही बोते, उससे बहुत सारी बंदूक उग जाएगी फिर अंग्रेजों पर हम उसे चला देंगे।भगत सिंह जी की बात में नादानी थी क्योंकि उन्हें ये नही पता था कि बंदूकें खेत से नही उगती। लेकिन उनकी बात से उनके पिताजी बड़े हैरान हो गए। इतनी छोटी सी उम्र में उनके हृदय में अंग्रेजों के प्रति आक्रोश था।उन्हें इस बात की खुशी थी कि भगत सिंह देश प्रेमी है।

भगत सिंह का जीवन महज 23 वर्ष 5 माह व 23 दिन का था। उनके जीवन के महत्वपूर्ण सालों से हम उनके जीवन और उनके योगदान के बारे में जानेंगे। 

13 अप्रैल 1919- इस दिन जलियावाला बाघ में हत्या कांड हुआ था। जहाँ हज़ारों की संख्या में भारतीय लोगो को अंग्रेजों ने गोलियों से भुनवा दिया। अंग्रेजों द्वारा का एक एक्ट लाया गया था कि किसी भी भारतीय पर बिना मुकदमा चलाये उसे गिरफ्तार किया जा सकता है। उस एक्ट का नाम था रॉलेट एक्ट। इसके खिलाफ भारतीय जलियावाला बाघ में विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। जनरल डायर ने हजारों प्रदर्शनकारियों को गोलियोन से भुनवा दिया। ये घटना को देखने के लिए भगत जी 20 किलोमीटर पैदल चलकर जलियावाला बाघ पहुंचे।वहां पहुँच कर जो उन्होंने देखा उसने उनकी रूह को झंझोड़ कर रख दिया। हज़ारों की संख्या में लाशें थी।खून से रंगी हुई भूमि थी।उन्होंने वहां की खून से रंगी हुई मिट्टी उठायी और शपत ली कि वह इसका बदला अंग्रेजों से ज़रूर लेंगे। उस दिन वह मिट्टी को लेकर घर आगये।

 1 अगस्त 1920 में भगत सिंह ने असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया। जिसमे गांधी जी अहिंसक रूप से सभी को अंग्रेजों के यहां से नौकरी छोड़ने,टैक्स ना देने, अंग्रेज़ी वस्तु व कपड़े जलाने के लिए प्रेरित कर रहे थे। तभी भगत सिंह जी ने भी बचपन मे अंग्रेज़ी किताबों को जलाया व इस आंदोलन में भूमिका निर्धारित की।

 5 फरवरी 1922  इस वर्ष चौरी-चौरा कांड हुआ जिसमें भारतीय ने अंग्रेजों  के पुलिस थाने में आग लगा दी थी। जिसमे पुलिस वालों की मृत्यु हुई थी। गांधी जी  हिंसात्मक आंदोलन के पक्ष में नही थे। इसीलिए उन्होंने आंदोलन वापिस ले लिया। ये बात भगत सिंह जी को पसंद नही आयी। 

इसके बाद भगत जी स्वयं क्रांतिकारी दल में शामिल हुए। जिसके प्रमुख भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, सुखदेव व राजगुरु थे।1928 में उन्होंने नौजवान भारत सभा “हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन” का विलह कर ” हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन” नाम रखा। 

30 अक्टूबर 1928- 17 दिसंबर 1928-  साइमन कमीशन के द्वारा लाठी चार्ज में 30 अक्टूबर 1928 को लाला लाजपत राय घायल हुए। 17 नवंबर 1928  को उनकी मृत्यु हो गयी। देश को इसका बड़ा सदमा पहुंचा।इस बार भगतसिंह, चंद्रशेखर, राजगुरु, जयगोपाल ने 17 दिसंबर 1928 को लाहौर कोतवाली पर ब्रिटश के एक प्रमुख जॉन सॉन्डर्स की हत्या की। इस प्रकार लाला लाजपतराय जी की मृत्यु का बदला लिया। इस घटना के बाद भगत जी ने अपनी दाड़ी व बाल कटवा लिए ताकि कोई उन्हें पहचान न सके।

8 अप्रैल 1929- अंग्रेज़ो द्वारा मजदूर विरोधी बिल पास किया जाने वाला था। ब्रिटिश सरकार को गरिबों से व व्यापारियों से कोई मतलब नही था। वे मनमानी कर रहे थे। ये भगतसिंह व चंद्रशेखर आज़ाद को मंजूर नही था। भगतसिंह ने बटुशेखर दत्त के साथ दिल्ली की केंद्रीय असेंबली में बम फेंके। उन्होंने उसमे कोई भी नुकसानदायक पदार्थ नही मिलाया था। उनका उद्देश्य नुकसान पहुंचाना नही बल्कि अंग्रेजों को नींद से जगाना और विरोध करना था।उन्होंने खाली जगह बम फेंके थे। इसके बाद खुद अपने आप को ब्रिटिश सरकार के हवाले इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगा कर किया।उन्होंने अपनी जान से बढ़ कर अंग्रेजों के अत्याचारों का विरोध करना व उनके अत्याचारों को सामने लाना समझा। 

जेल में क्रांति- भगतसिंह जी देश के लिए ही जीना और मरना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने कभी अपनी जान की परवाह नही की। जब वह जेल में आये तब उन्होंने देखा कि यहां भी अंग्रेज़ी कैदी और भारतिय कैदियों के बीच भेद- भाव हो रहा है। भारतीय कैदियों की रसोई में कॉकरोच, चुहे व बहुत गंदगी थी। वही अंग्रेज़ी कैदियों के लिए सब साफ सफाई थी। कपड़े भी उनको समय पर बदलने नही दिए जाते थे। भगतसिंह जी ने ठान लिया कि जब तक ये भेद भाव खत्म नही होगा तब तक व भोजन ग्रहण नही करेंगे। जून 1929 में भगतसिंह और उनके दल के लोगो ने भूख हड़ताल करवाई। जिसे तुड़वाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने अथक प्रयास किये। बर्फ की सिल्लियों पर लेटा कर उन्हें कौड़ियों से मारा गया। उनके मुह में दूध डालने का प्रयास किया। पर उन्होंने एक बूंध भी दूध नही पिया था। बाद में उन्हें लाहौर जेल में रखा गया। उनकी हड़ताल को देख सभी भूख हड़ताल का हिस्सा बने। जिसमे सुखदेव व राजगुरु भी थे। 13 सितंबर को जितेंद्रदास नाथ की 63 दिन भूखे रहने पर मृत्यु हो गयी। देश ने इसपर बहुत दुख जताया। इसके बाद 5 अक्टूबर 1929 को अंग्रेजों को भगत सिंह के दृढ़ संकल्प के आगे घुटने टेकने पड़े। भगतसिंह ने ब्रिटिश सरकार को मजबूर कर दिया।ब्रिटिश सरकार को उनकी शर्तें माननी पड़ी। भगतसिंह ने इस प्रकार जेल में समानता लाने की शुरुवात की। वे 116 दिन बीना खाएं पिये रहे। पर अपने संकल्प को पूरा किया। 5 अक्टूबर 1929 को जब उनकी शर्तें मान ली गयी तब उन्होंने अपनी हड़ताल तोड़ी।

26 अगस्त 1930 को अदालत ने उन्हें विस्फोट की वजह से अपराधी सिद्ध किया और 7 अक्टूबर को 68 पेज का निर्णय दिया। जिसमें भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई। बाकी लोगो को आजीवन कारावास की सजा दी। 

23 मार्च 1931-  ये वो दिन था जब देश के लिए भगतसिंह ने जान न्योछावर की। उनकी ख्वाइश  थी की वे देश के लिए ही अपने प्राण दे। उनके मुख पर फांसी का जरा भी दुख नही था। वे आज के दिन सबसे ज़्यादा खुश थे। भगतसिंह,राजगुरु व सुखदेव तीनो इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे। खुशी से झूम रहे थे। और देश के प्रति अपने समर्पण को अपना सौभाग्य समझ रहे थे। उस दिन ये भूमि भी रोई होगी जिस दिन भगतसिंह ने अपने आप का समर्पण  किया। पूरे देश मे इसका दुख था। इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगा कर वे फांसी पर चढ़े। लेकिन उस दिन वह अपने जैसे सेंकडो भगतसिंह देश को दे गए। उन्हें देख ना जाने कितने लोग आज भी प्रेरित होते है। 23 साल की उम्र में देश को अपनी जान समर्पण की। 

उपसंहार-  भगतसिंह ने हमें यह सीखाया कि जीवन चाहे छोटा जियो पर सार्थक जियो। देश के लिए वे एक मिसाल हैं। अपने चेहरे पर एक शिकन लेकर भी वो शहीद नही हुए। वो सदा साहस व स्वाभिमान से जिये। मानो स्वाभिमान भी उनके रूप को देख हैरान होगा। 23 साल जीने वाले भगत सिंह को 23000 वर्ष तक या इससे भी ज़्यादा वक़्त तक याद रखा जाएगा। वे हमारे दिलों में, युवा पीढ़ी में व सीमा पर तैनात हर सैनिक में प्रेरणा के रूप में रहते है। उन्ही के कारण हमारा मनोबल आज भी कायम है। वे देश के लिए शहीद हुए और सैंकड़ो भगतसिंह के आगमन का इशारा दे गए। 

भूमि ऋणि है ऐसे वीरों की जो जिये भी देश के लिए और शहीद भी देश के लिए हुए।

आपका और मेरा सौभाग्य है जो मैं इतने बड़े क्रांतिकारी के बारे में लिख पा रही हु और आप पढ़ पा रहे है। तहे दिल से सलामी है ऐसे वीरों को, हम बहुत आभारी होंगे व नम आंखों से आज उन्हें याद कर रहे होंगे। भगत सिंह विश्वास, प्रेरणा, मनोबल, स्वाभिमान बनकर आज भी देश के हर युवा में झलकते है जो गलत के खिलाफ आवाज उठाते है… 

” मेरे सीने में जो जख्म है वो सब फूलों के गुच्छे है,

 हमें तो पागल ही रहने दो हम पागल ही अच्छे है” 

                                          -भगतसिंह

              (इंकलाब जिंदाबाद….!)

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