आज हम “गुरु गोबिंद सिंह जी पर 10 लाइन्स निबंध” लेकर आपके समक्ष आये है, इस आर्टिकल में आप ’10 Lines on Guru Govind Singh in Hindi’ में पढ़ेंगे।
Guru Govind Singh in Hindi
भारत जैसी पावन भूमि में अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया तथा अपने कर्मों से देश को तो गौरवान्वित किया ही साथ ही साथ अपने ज्ञान के लौ से सभी को प्रकाशित भी किया।
गुरु गोविंद सिंह सिखों के दसवें गुरु के नाम से जाने जाते हैं। वह एक शूरवीर, दानवीर, तेजस्वी महापुरुष थे। मुगलों के खिलाफ और अत्याचार के खिलाफ न केवल उन्होंने अपनी आवाज उठाई बल्कि डट कर सब का सामना भी किया। अपने परिवार का बलिदान देने से तनिक भी ना घबराए। उन्होंने प्रसिद्ध नारा ‘सत श्री अकाल’ का नारा दिया।
जीवन परिचय
गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म पौस माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को 1666 को पटना बिहार में हुआ था। इनके पिता का नाम गुरु तेग बहादुर और माता का नाम गुजरी देवी था।इनके बचपन का नाम गोविंद राय था। जन्म के उपरांत 4 वर्षों तक वह पटना में ही रहे, जिसे आज तख्त सहित पटना साहिब के नाम से जाना जाता है।उनके पिता नौवें गुरु तेग बहादुर जी 4 वर्ष पश्चात पंजाब लौट गए। गुरु गोविंद सिंह जी का बचपन वहीं बिता। वे बचपन से ही स्वाभिमानी तथा वीर थे। घुड़सवारी, हथियार चलाना यह सारे गुण उन्होंने बचपन में ही सीख लिए थे। उन्हें हिंदी, फारसी एवं संस्कृत भाषा का ज्ञान था। पंजाब में 2 वर्ष बिताने के बाद उनका परिवार हिमालय के शिवालिक पहाड़ियों में स्थित चक्की नामक स्थान पर आ गया। वर्तमान में यह आनंदपुर साहिब के नाम से जाना जाता है। गोविंद राय जी आनंदपुर साहब में आध्यात्मिक, आनंद, मानव मात्र में नैतिकता, निडरता तथा आध्यात्मिक जागृति का संदेश दिया करते थे। कश्मीरी पंडितों को जब जबरन धर्म परिवर्तन करके जबरन मुस्लिम बनाया जा रहा था तब गुरु गोविंद सिंह ने अपनी आवाज बुलंद की। कश्मीरी पंडितों की प्रार्थना सुनकर उन्हें धर्म परिवर्तन से बचाने के लिए स्वयं इस्लाम को कुबूल ना करने पर उनके पिता तेग बहादुर को दिल्ली के चांदनी चौक में सार्वजनिक रूप से सर धड़ से अलग कर दिया गया। उस समय गुरु गोविंद जी की आयु केवल 9 साल की थी। इसके बाद बैसाखी 1676 में उन्हें सिखों के दसवें गुरु के नाम से घोषणा की गई। दसवें गुरु बनने के बाद अपनी शिक्षा जारी रखी और 1684 में ‘चंडी चंडी दी वार’ की रचना कर डाली।
वैवाहिक जीवन
गुरु गोविंद सिंह जब केवल 10 वर्ष के ही थे, तब उनका विवाह माता जीतो के साथ आनंदपुर से 10 किलोमीटर दूर बसंतगढ़ में कर दिया गया। उनसे गुरु गोविंद सिंह के को तीन पुत्रों की प्राप्ति हुई। जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह।
उनका दूसरा विवाह आनंदपुर की माता सुंदरी के साथ 17 वर्ष की आयु में हुआ। दूसरी पत्नी से उन्हें पुत्र संतान की प्राप्ति हुई, जिसका नाम अजीत सिंह था। उनका तीसरा विवाह तब हुआ जब वे 33 वर्ष के थे। उनका तीसरा विवाह माता साहिब देवन से हुआ। तीसरी पत्नी से उन्हें कोई संतान की प्राप्ति नहीं हुई।
खालसा पंथ की स्थापना
गुरु गोविंद सिंह जी के नेतृत्व में सिख समुदाय में बहुत कुछ नया हुआ। उन्होंने सन 1699 में बैसाखी के दिन विधिवत दीक्षा प्राप्त अनुयायियों के संगठन का निर्माण किया। भरी सभा में उन्होंने सबके सामने पूछा कि “कौन अपने सिर का बलिदान देना चाहता है”? उसी वक्त एक सेवक फौरन राजी हो गया। गुरु गोविंद जी उसे अपने साथ एक तंबू में ले गए और खून से सने तलवार को अपने संग सभा में लेकर लौट आए। इसी तरह वे पांच सेवकों को अपने साथ बलिदान के लिए लेकर गए। बाद में वे पांचों के साथ जीवित वापस लौटे और उन्हें पंच प्यारे या खालसा का नाम दिया। उन्होंने एक लोहे का कटोरा लिया और उसमें पानी और चीनी मिलाकर दुधारी तलवार से घोला और अमृत का नाम दिया। प्रथम पांच खालसा बनाने के बाद उन्हें छठे खालसे का नाम दिया गया। जिसके बाद उनका नाम परिवर्तन करके गुरु गोविंद सिंह रख दिया गया। इसके बाद उन्होंने पांच ककार (केश ,कंघा,कड़ा ,कृपाण ,कच्चेरा ) का महत्व बताया।
गुरु गोविंद सिंह जयंती
गोविंद सिंह सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह जी की याद में हर साल सिखों द्वारा मनाया जाता है। इस दिन देशभर में गुरुद्वारों को सजाया जाता है।लोग अरदास भजन कीर्तन करते हैं तथा गुरुद्वारे में मत्था टेकने जाते हैं। गुरुद्वारे में इस दिन नानक वाणी पढ़ी जाती है तथा दान,पुण्य आदि अनेक लोक कल्याण के कार्य किए जाते हैं। इस दिन गुरुद्वारों में लंगर रखा जाता है।सभी लोग गुरुद्वारों में गुरु गोविंद सिंह जी का प्रसाद खाने जाते हैं।
10 Lines on Guru Govind Singh in Hindi
- गुरु गोविंद सिंह सिखों के दसवें गुरु थे।
- उनका जन्म 1666 में बिहार के पटना जिले में हुआ। 3)उन्होंने ‘सत श्री अकाल’ का नारा दिया।
- गुरुजी ने कभी भी किसी का अहित करने की कोशिश नहीं की।
- उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की।
- उन्होंने सदा प्रेम, एकता और भाईचारे का संदेश दिया।
- उन्होंने कभी भी युद्ध केवल निजी स्वार्थ या साम्राज्य विस्तार के लिए नहीं किया।
- वे बचपन से ही सरल, सहज भक्ति भाव वाले कर्मयोगी थे।
- गुरु गोविंद सिंह की जयंती पर सभी गुरुद्वारों को सजाया जाता है।
- इस दिन गुरुद्वारों में लंगर का आयोजन होता है।
- इस दिन सभी सिख गुरुद्वारे में मत्था टेकने तथा महा प्रसाद खाने जरूर जाते हैं।
5 Lines on Guru Govind Singh in Hindi
- गुरु गोविंद सिंह जी बलिदान की मूर्ति थे, उन्होंने परिवार का बलिदान देने से भी संकोच नहीं किया।
- वे एक महान लेखक, मौलिक चिंतक तथा संस्कृत समेत कई अन्य भाषाओं के ज्ञाता भी थे।
- वे विद्वानों के संरक्षक थे तथा उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना भी की।
- उनके दरबार में 52 कवि व लेखक बैठते थे इसीलिए उन्हें ‘संत सिपाही’ भी कहा जाता है।
- उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की।
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FAQ on Guru Govind Singh in Hindi
Question : गुरु गोविंद सिंह का जन्म कब और कहां हुआ था?
Answer: गुरु गोविंद सिंह का जन्म 1666 को पौष मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को बिहार के पटना जिले में हुआ था।
Question : गुरु गोविंद सिंह के गुणों का बखान करें।
Answer: गुरु गोविंद सिंह जी सत्य और प्रेम की मूर्ति थे। उन्होंने अपनी वाणी की मधुरता से दुश्मनों को भी परास्त किया। अनेक भाषाओं का ज्ञान रखने वाले गुरु गोविंद सिंह ने अनेक ग्रंथों की रचना की। वे सिखों के दसवें गुरु थे उन्होंने कहा था कि मनुष्य को सत्य के पथ पर चलना चाहिए देर से ही सही पर सत्य की जीत निश्चित तौर पर होती है।
Question : खालसा पंथ की स्थापना कब और किसने की?
Answer: गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना सन 1699 में की।
Question : गुरु गोविंद सिंह के वैवाहिक जीवन पर प्रकाश डालिए।
Answer: गुरु गोविंद सिंह ने अपने जीवन में तीन विवाह किए।उनका पहला विवाह 10 वर्ष की आयु में माता जीतो के साथ दूसरा विवाह माता सुंदरी के साथ 17 वर्ष की उम्र में हुआ तथा तीसरा विवाह 35 वर्ष की उम्र में माता साहिब देवन से हुआ।
Question : उनका प्रसिद्ध नारा क्या था?
Answer: गुरु गोविंद सिंह का प्रसिद्ध नारा ‘सत श्री अकाल’ था।